उत्तर - कारक के आधार पर तत्पुरुष समास के छः भेद हैं -
- कर्म तत्पुरुष - जिस समास के पूर्व पद में कर्म कारक ( को ) का लोप होता है , उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - शरणागत - शरण को आया हुआ । स्वर्ग- प्राप्त - स्वर्ग को प्राप्त। विदेश-गमन - विदेश को गमन, विकासोन्मुख - विकास को उन्मुख, पक्षधर - पक्ष को धारण करने वाला, तर्कसंगत- तर्क को संगत, मरणासन्न - मरण को आसन्न आदि ।
- . करण तत्पुरुष - जिस समास के पूर्व पद में करण कारक ( से ,द्वारा ) का लोप होता है , उसे करण तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - तुलसीकृत - तुलसी द्वारा कृत । हस्तलिखित - हाथ से लिखा हुआ । इतिहास सम्मत - इतिहास से सम्मत। कालप्रवाह - काल का प्रवाह। परम्परा-प्राप्त - परम्परा से प्राप्त। राज्यच्युत - राज्य से च्युत। बैलगाड़ी- बैलो से चलने वाली गाड़ी। अकाल पीड़ित- अकाल से .पीड़ित।मोहांध - मोह से अंधा। धर्मांध - धर्म से अंधा । आँखों देखी - आँखों से देखी । भड़भूजा- भाड़ द्वारा भूजनेवाला । मदांध - मद (घमंड) सा अंधा । मदमत्त- मद से मत्त । क्षुधातुर- क्षुधा से आतुर । वाग्युद्ध- वाक् से युध्द आदि
- संप्रदान तत्पुरुष - जिस समास के पूर्व पद में सम्प्रदान कारक ( के लिए ) का लोप होता है , उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - देश-भक्ति - देश के लिए भक्ति । रसोईघर - रसोई के लिए घर । डाकगाड़ी- डाक के लिए गाड़ी। विद्यालय - विद्या ( देने ) के लिए आलय। हवन-सामग्री- हवन के लिए सामग्री। हथकड़ी - हाथ के लिए कड़ी। सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह। भूतबलि - भूत के लिए बलि। छात्रावास- छात्रों के लिए आवास। समाचार-पत्र - समाचार के लिए पत्र। यज्ञशाला - यज्ञ के लिए शाला। रेलभाड़ा- रेल के लिए भाड़ा। जनहित - जन के लिए हित। कृषिभवन- कृषिभवन, युववाणीं - युवाओं के लिए वाणीं। चूहेदानी - चूहे के लिए दानी। कर्णफूल - कर्ण के लिए फूल। हथफूल- हाथ के लिए फूल। मालगाड़ी - माल ढोने के लिए गाड़ी आदि
- अपादान तत्पुरुष- जिस समास के पूर्व पद में अपादान कारक (से ) का लोप होता है , उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - पथभ्रष्ट - पथ से भ्रष्ट । जन्मांध - जन्म से अंधा। ऋण मुक्त- ऋण से मुक्त। पदच्युत- पद से च्युत ( पृथक ) । आशातीत- आशा से अतीत। कामचोर- काम से चोर। धर्मविरत - धर्म से विरत ( अलग) । हतश्री- श्री से हत ( रहित)। विवाहेत्तर- विवाह से इतर। राजद्रोह - राज से द्रोह। लोकभय - लोक से भय।
- अधिकरण तत्पुरुष - जिस समास में अधिकरण कारक (में,पर ) का लोप होता है , उसे अधिकरण तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - आपबीती - अपने पर बीती । पुरुषोत्तम - पुरुषों में उत्तम । कविराज- कवियों में राजा। देवराज - देवों में राजा। सिरदर्द- सिर में दर्द। ऋषिराज - ऋषियों में राजा। गृहप्रवेश - गृह में प्रवेश। घुड़सवार - घोड़े में सवार। तल्लीन- उसमें (तद् ) में लीन। मनमौजी - मन में मौजी।देवाश्रित - देव पर आश्रित।
- सम्बन्ध तत्पुरुष - जिस समास में सम्बन्ध कारक (का,के,की ) का लोप होता है , उसे सम्बन्ध तत्पुरुष कहते हैं । जैसे - राजपुरुष - राजा का पुरुष । घुड़दौड़ - घोड़ों की दौड़ । नरबलि - नर की बलि। स्वास्थ्यवर्धक - स्वास्थ्य का वर्धन करने वाला। रक्तपात- रक्त का पात। दुःखसागर - दुःख का सागर। रामचरित- राम का चरित। नियमावली- नियमों की अवली। मृत्युदंड - मृत्यु का दंड। मंत्रिपरिषद - मन्त्रियोंकी परिषद् ।
नञ तत्पुरुष ( नकारात्मक अर्थ देने वाला समास )
- दूसरा पद प्रधान होता है।
- रूप परिवर्तन होने के कारण यह अव्ययीभाव से अलग है।
- इस समास के पूर्व नकारात्मक अर्थ व्यक्त करने वाले उपसर्गों का प्रयोग होता है। जैसे - अ , अन आदि